Monday 18 May 2015

ये उन दिनों की बात है...

I wrote these lines in anticipation of meeting the love of my life...my beloved wife.
It has been two beautiful years now and it is wonderful to be able to feel those moments again...hope you feel the same...


ढूँढता हूँ तुझे इन लकीरों में , के तेरी ख़्वाहिश बेइंतहाँ है ;

है बसा तेरा अक्स इस दिल में , पर जाने तू कहाँ है...जाने तू कहाँ है |


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वो कहते हैं तू ख़याल है बस...इस पागल दिल का फ़ितूर है तू  ;


पर ज़िंदा हूँ मैं...खुद सुबूत है ये, के शायद कहीं ज़रूर है तू  |


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ख़्वाब में मिलीं कल नज़रें उनसे...जाने दो पल में क्या कह गयीं ;


हम तो अंदाज़-ए-बयाँ पर ही मर मिटे...और बात अधूरी रह गयी |


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तेरे ख़यालों में ऐसा डूबा...जैसे वर्षा घनघोर हुई ;


जाने कब बीती रात ...और जाने कब भोर हुई |


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ये तू नहीं...तेरी याद है बस...अब कौन इस दिल को समझाए ;


तेरी जूसतजू ने शायर किया...एक झलक जाने क्या कर जाए |


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तेरा नाम लबों से गुज़रे अर्सा हुआ, पर मुस्कुराहट अभी बाकी है ;


कैसे भुला दूं तुझे ए हमनशीं ...के चाहत अभी बाकी है |


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महफ़िलों में जाना छोड़ दिया हमनें, के बेरंग हो चला ये जहाँ  ;


के तेरे इंतज़ार में जो मज़ा है, वो उनके मिलने में कहाँ |


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वो कहते हैं सपनों में जीना कोई अच्छी बात नहीं, फ़िर क्यूँ तुम इन ख्वाबों से निकल आती नहीं ;


चाहत नहीं क्या  ए हमनशीं हमसे...या बस मेरी तरह जताती नहीं |


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  लाख़ की कोशिश हमनें ...के ये जज़्बात इन लफ़्ज़ों में समा जायें ;


पर इन तन्हाइयों में वो नूर कहाँ...के रूठे इन अल्फ़ाज़ को मना पायें |


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